भारत एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं से भरा देश है, जहां हर नदी, हर पर्वत, और हर नगर के पीछे कोई न कोई धार्मिक मान्यता या ऐतिहासिक कथा जुड़ी होती है। ऐसा ही एक सवाल अक्सर उठता है — जब काशी और हरिद्वार दोनों ही भगवान शिव के पवित्र धाम हैं, तो लोग पूजा-पाठ और संस्कारों के लिए गंगाजल हरिद्वार से तो लाते हैं, लेकिन काशी से नहीं, क्यों?इस लेख में हम इसी प्रश्न का उत्तर जानने का प्रयास करेंगे — धार्मिक, पारंपरिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोणों से। हरिद्वार — गंगाजल का शुद्धतम स्रोतहरिद्वार, उत्तराखंड राज्य में स्थित वह स्थान है जहां हिमालय से निकलकर गंगा पहली बार मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। यहीं हर की पौड़ी जैसे अत्यंत पावन घाट हैं जहाँ प्रतिदिन गंगा आरती होती है। भारत के किसी भी कोने से आने वाला श्रद्धालु हरिद्वार आता है तो गंगाजल अवश्य अपने साथ ले जाता है, चाहे वह पूजा के लिए हो, संस्कारों के लिए हो या प्रसाद के रूप में हो। इसके पीछे कारण यह है कि:गोमुख से निकली गंगा नदी का सबसे शुद्ध और स्वच्छ जल हरिद्वार में मिलता है।गंगोत्री, यमुनोत्री, और हरिद्वार जैसे स्थानों पर गंगा का जल हिमनदियों से आता है और प्रदूषण रहित होता है।हरिद्वार को ‘गंगा द्वार’ भी कहा जाता है, यानी गंगा का प्रवेशद्वार। काशी — मोक्ष की नगरी, पर गंगाजल लाना क्यों वर्जित है?काशी (वाराणसी), भगवान शिव की प्रिय नगरी मानी जाती है और इसे ‘मोक्ष की भूमि’ कहा गया है। यहां पर गंगा की धारा दक्षिण दिशा की ओर बहती है, जो विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है। लेकिन इसके बावजूद, यह परंपरा नहीं है कि लोग काशी से गंगाजल लेकर जाएं।
इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं — एक धार्मिक-परंपरागत और दूसरा वैज्ञानिक।
1. धार्मिक और परंपरागत कारणकाशी में मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट जैसे प्रमुख श्मशान घाट हैं, जहां 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं। वहां दाह-संस्कार के बाद राख और अस्थियां गंगा में प्रवाहित कर दी जाती हैं। यह प्रक्रिया एक आध्यात्मिक विधान है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। यदि इस गंगाजल को कोई अपने घर ले जाए, तो उस जल में अस्थियों या चिता-राख के अंश शामिल हो सकते हैं, जिससे वह जल अब पवित्र उपयोग के लिए उचित नहीं माना जाता।यह भी मान्यता है कि काशी से गंगाजल ले जाना मोक्ष-प्राप्ति की प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है, क्योंकि उस जल का उद्देश्य शांति प्रदान करना होता है, न कि उसका पुनः प्रयोग।
2. वैज्ञानिक कारणचूंकि काशी में लगातार अस्थियां और राख गंगा जल में प्रवाहित की जाती हैं, इसलिए जल में अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, फंगल तत्व और हानिकारक सूक्ष्मजीव पनप सकते हैं।गंगा जल की एक विशेषता है कि वह स्वयं को शुद्ध करने की क्षमता रखता है, लेकिन इतने अधिक प्रदूषण और राख के बीच यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है।ऐसे में यदि कोई व्यक्ति यह जल आचमन करता है या पीता है, तो स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे पेट संबंधी बीमारियाँ, संक्रमण आदि।निष्कर्षहरिद्वार से गंगाजल लाना धार्मिक परंपरा, पवित्रता और वैज्ञानिक शुद्धता — तीनों दृष्टिकोण से उपयुक्त और लाभकारी माना गया है। वहीं काशी से गंगाजल न लाना एक गहरी धार्मिक भावना, मोक्ष की परंपरा, और स्वास्थ्य की सुरक्षा से जुड़ा निर्णय है।इसलिए यह कहना बिल्कुल उचित है कि गंगाजल केवल एक जल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक है — जिसे किस स्थान से लाना है, यह केवल परंपरा नहीं, गहन तात्त्विक सोच का परिणाम है।